Wednesday, 4 July 2018



दोस्तों https://m.facebook.com/yogeshbajpaie/?ref=bookmarks#!/story.php?story_fbid=215997035706809&substory_index=0&id=136674260305754&__tn__=%2As%2As-R
कृपया दी हुई लिंक पे जाकर भारत स्वच्छता अभियान का सन्देश अवश्य पढ़े l
स्वच्छ भारत , सुन्दर भारत l
धन्यवाद l

Tuesday, 6 March 2018

13 प्रेरणादायक चाणक्य नीति

कुछ प्रेरणादायक चाणक्य नीति

चाणक्य राजनीतिक विज्ञानं के महा ज्ञाता थे। वो भारत के शास्त्रीय अर्थशास्त्र के एक महान शिक्षक थे। उनका मौर्य साम्राज्य के विकास और मार्ग दर्शन में बहुत बड़ा योगदान रहा। साथ ही वह एक महान विचारक और दार्शनिक भी थे। उनकी शिक्षाओं को दो पुस्तकों- अर्थशास्त्र और चाणक्य नीती में एक साथ रखा गया है।
उनके महान प्रेरणादायक विचार हर किसी को जीवन, प्रेम, महिलाओं से जुड़े चीजों के विषय में ज्ञान देते हैं। आज उन्हीं में से कुछ महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक चाणक्य उद्धरण आपके लिए हम ले कर आये हैं।
1-फूलों की खुशबू  हमेशा केवल हवा की दिशा में फैलती है लेकिन एक व्यक्ति की भलाई सभी दिशाओं में फैलती है।
2. God is not present in idols. Your feelings are your god. The soul is your temple. Chanakya
भगवान मूर्तियों में मौजूद नहीं है। आपकी भावनाएं आपका भगवान हैं और आत्मा आपका  मंदिर है।
3. Education is the best friend. An educated person is respected everywhere. Education beats the beauty and the youth.
शिक्षा सबसे अच्छी दोस्त है एक शिक्षित व्यक्ति को हर जगह सम्मान मिलता है । शिक्षा सौंदर्य को पीछे छोड़ देती है।            
4. Books are as useful to a stupid person as a mirror is useful to a blind person. 

पुस्तकें एक बेवकूफ व्यक्ति के लिए उपयोगी होती हैं जैसे कि एक अंधे व्यक्ति के लिए दर्पण उपयोगी होता है।
5. The biggest guru-mantra is: never share your secrets with anybody. It will destroy you.
सबसे बड़ा गुरु मंत्र है: किसी के साथ, अपने रहस्य कभी भी साझा नहीं करें। यह आप को नष्ट कर देगा।
6. A person should not be too honest. Straight trees are cut first and honest people are screwed first.
एक व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना चाहिए सीधे पेड़ पहले काट दिए जाते हैं और ईमानदार लोगों को पहले खराब कर दिया जाता  है।
7. As soon as the fear approaches near, attack and destroy it.
जैसे ही डर  निकट आये, तुरंत ही हमला करके उसे नष्ट कर देना चाहिये। 
8. The earth is supported by the power of truth; it is the power of truth that makes the sun shine and the winds blow; indeed all things rest upon truth.
पृथ्वी सच्चाई की शक्ति का समर्थन करती है। यह सच्चाई की शक्ति है जो सूरज में चमक और हवाओं को उड़ा देती है; वास्तव में सब बातें को सत्य पर निर्भर  है।
9. As a single withered tree, if set aflame, causes a whole forest to burn, so does a rascal son destroy a whole family.
एक सूखे वृक्ष अगर आग पकड़ ले  तो पूरे जंगल के  जलने का कारण बन जाता है, वैसे ही  एक दुष्ट पुत्र पूरे परिवार को नष्ट कर देता है    
10. Never make friends with people who are above or below you in status. Such friendships will never give you any happiness.
कभी भी उन लोगों के साथ दोस्त नहीं बनें जो स्थिति में ऊपर या नीचे हैं इस तरह से दोस्ती से  कभी आपको कोई खुशी नहीं होगी।
11. A man is born alone and dies alone; and he experiences the good and bad consequences of his karma alone; and he goes alone to hell or the Supreme abode.
एक आदमी अकेला पैदा होता है और अकेला मर जाता है; और वह अकेले अपने कर्म के अच्छे और बुरे परिणाम अनुभव करता है; और वह नरक या स्वर्ग  के लिए अकेले ही जाता है।
12. Once you start a working on something, don’t be afraid of failure and don’t abandon it. People who work sincerely are the happiest.
एक बार जब आप किसी काम को करना शुरू करते हैं, तो विफलता से  मत डरिये और उसे छोड़िये मत। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं, वे सबसे ज़्यादा खुश हैं।
13. As long as your body is healthy and under control and death is distant, try to save your soul; when death is immanent what can you do?
जब तक आपका शरीर स्वस्थ और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है, अपनी आत्मा को बचाने की कोशिश करें; जब मृत्यु समक्ष है, तो आप क्या कर सकते हैं?    

शहीद भगत सिंह के प्रेरणादायक विचार

ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श और प्रेरणा स्त्रोत है। इन्होंने ब्रिटिश सरकार के केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें 23 मार्च 1931 को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया।
नाम- शहीद भगत सिंह (Shahid Bhagat Singh) – [भगत सिंह की जीवनी पढ़ें] 
जन्म- 28 सितम्बर 1907 जारनवाला तहसील, पंजाब, ब्रिटिश भारत (Jaranwala Tehsil, Punjab, British India)
मृत्यु- 23 मार्च 1931 (23 वर्ष कि आयु में) लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत (Lahore, Punjab, British India)
#1 Revolution is an inalienable right of mankind. Freedom is an imperishable birth right of all. Labour is the real sustainer of society.
क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता जीवन में कभी भी समाप्त ना होने वाला जन्म सिद्ध अधिकार है। श्रम मानव समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
#2 The sanctity of law can be maintained only so long as it is the expression of the will of the people.
कानून की पवित्रता तब तक कायम/बनी रह सकती है, जब तक कि वो लोगों कि इच्छा की अभिव्यक्ति करे।
#3 Any man who stands for progress has to criticize, disbelieve and challenge every item of the old faith.
कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा।
#4 Merciless criticism and independent thinking are the two necessary traits of revolutionary thinking.
निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार, ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।
#5 I emphasize that I am full of ambition and hope and of full charm of life. But I can renounce all at the time of need, and that is the real sacrifice.
मैं इस विषय पर जोर देता हूँ कि मैं महत्वकांशा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ। परन्तु मैं आवश्यकता पड़ने पर यह सब त्याग/छोड़ भी सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है।
#6 If the deaf are to hear, the sound has to be very loud. When we dropped the bomb, it was not our intention to kill anybody. We have bombed the British Government. The British must quit India and make her free.
अगर बहारों को सुनना, तो आवाज को बहुत ही जोरदार होना होगा। जब हमने बम गिराया, तो हमारा इरादा किसी को मरना नहीं था। हमने बम गिराया ब्रिटिश हुकूमत पर। ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना चाहिए और आज़ाद करना चाहिए।
#7 It is easy to kill individuals but you cannot kill the ideas. Great Empires crumbled, while the ideas survived.
किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
#8 Bomb and Pistons do not make a revolution. The Sword of revolution is sharpened on the whetting-stone of ideas.
बम और पिस्तौल कभी भी क्रांति नहीं लाते। क्रांति कि तलवार तो विचारों के पत्थर से तेज किया जाता है।
#9 Every tiny molecule of Ash is in motion with my heat I am such a Lunatic that I am free even in Jail.
राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है, मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आज़ाद हूँ।
#10 Revolution did not necessarily involve sanguinary strife. It was not a cult of bomb and pistol.
यह महत्वपूर्ण नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संगर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का रास्ता नहीं था।





चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव में हुआ था। उनके माता-पिता पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी थे। पं. सीताराम तिवारी अलीराजपुर के पूर्वी इलाके में सेवा करते थे (जो वर्तमान में मध्य प्रदेश में स्थित है) और चंद्र शेखर आजाद का बचपन गांव भवरा में बिता था। अपनी मां जगरानी देवी के आग्रह पर, चंद्रशेखर आज़ाद संस्कृत का अध्ययन करने के लिए काशी विद्यापीठ, बनारस गए थे।

क्रन्तिकारी गतिविधियाँ Revolutionary activities

चंद्रशेखर आज़ाद 1919 में अमृतसर के जलीयावाला बाग हत्याकांड में काफी परेशान हुए। 1921 में, जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तब चंद्रशेखर आज़ाद सक्रिय रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और उन्हें कैद हो गई। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण चन्द्रशेखर पकड़े गए, उन्होंने पंद्रह वर्ष की उम्र में अपनी पहली सजा प्राप्त की। जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने कहा “आजाद”(जिसका अर्थ स्वतंत्र) और उन्होंने चाबुक के प्रत्येक धार के साथ युवा चंद्रशेखर ने “भारत माता की जय” चिल्लाया। तब से चंद्रशेखर ने आजाद का खिताब ग्रहण किया और चंद्रशेखर आजाद के नाम से प्रसिद्ध हुए। चंद्रशेखर आज़ाद ने वचन दिया कि उन्हें ब्रिटिश पुलिस द्वारा कभी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और वह मुक्त व्यक्ति के रूप में मौत को गले लगायेंगे।
जब चंद्रशेखर आजाद को असहयोग आंदोलन के निकाल दिया तो वे बहुत आक्रमक और क्रांतिकारी आदर्शों के प्रति आकर्षित हुए। उन्होंने अपने आप को वचनबद्ध किया कि किसी भी हालत में वे आजादी दिला कर रहेंगे। सबसे पहले चंद्रशेखर आज़ाद और उनके सहयोगियों ने ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया, जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अत्याचार करने कार्यों के लिए जाने जाते थे। चंद्रशेखर आजाद (1926) में काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल हुए, और उन्होंने वाइसराय की ट्रेन (1926) में रखा खजाना लूट लिया, और लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने के लिए (1928) में सौन्दर्स को गोली मर दी।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन HRSA

भगत सिंह और सुखदेव और राजगुरु जैसे अन्य सहयोगियों के साथ, चंद्रशेखर आजाद ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन (HRSA) का गठन किया। एच आर एस ए भारत की भविष्य की प्रगति के लिए और भारतीय स्वतंत्रता और समाजवादी सिद्धांतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस के लिए एक भय बन चुके थे। ब्रिटिश पुलिस की प्रहार सूचि में चंद्रशेखर आजाद नाम था और ब्रिटिश पुलिस उनको ज़िंदा या मरा हुआ पकड़ना चाहती थी।

चंद्रशेखर आज़ाद मृत्यु Death

27 फरवरी, 1931 को चंद्रशेखर आजाद ने अल्फ्रेड पार्क अल्लाह में अपने दो साथियों से मुलाकात की। वह एक मुखबिर थे, उनके द्वारा धोखा दिया गया था, जिसने ब्रिटिश पुलिस को सूचित कर दिया। पुलिस ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया और चंद्रशेखर आजाद को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। चंद्रशेखर आजाद ने अकेले ही बहादुरी से लड़ाई की और तीन ब्रिटिश पुलिस कर्मियों को मार गिराया। लेकिन खुद को चारों ओर से घिरे हुए पाया और जब उनके पास बचने के लिए कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया, तब चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली मार दी। इस तरह उन्होंने ज़िंदा नहीं पकड़े जाने की प्रतिज्ञा को पूरा किया।


मातृ -पितृ दिवस पर निबंध

हिन्दू परिवारों में यह आम बात है कि बच्चे अपने माता पिता के पैरों को छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। कुछ बच्चे तो अपने माता पिता के पैर हर दिन सवेरे छूकर आशीर्वाद लेते हैं।
हिन्दू धर्म में माता पिता की पूजा रिवाजों का एक हिस्सा है। माँ को बच्चों का पहला गुरु माना जाता है और पिता को दूसरा माना जाता है। इसीलिए तो कहा जाता है –
माताः पिताः गुरू दैवं
यह संस्कृत का एक प्रसिद्ध हिन्दू बोल हैं जिसमें माता पिता को शिक्षक का दर्ज़ा बताया गया है। यह वाक्य वेदों और पुराणों से लिया गया है जिसमें माता पिता को सम्मान दिया गया है।
माता पिता हमारा ख्याल रखते है बचपन से लेकर बड़े होने तक। बिना कोई आस के वो हमें पढ़ाते है, लिखाते हैं और साथ ही दिन रात हमारी चिंता करते हैं। हमारा कर्तव्य होता है कि हम अपने माता पिता का सम्मान करें और साथ ही उनका ख्याल रखें।
उनका भी एक ऐसा समय अत है जब उन्हें हमारी जरूरत होती है वो है उनके बुढ़ापे के समय। ऐसे समय में हमें उनका साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
Bhartiya Janata Party (BJP) भारतीय जनता पार्टी सरकार, छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री रमन सिंह ने 14 फरवरी वैलेंटाइन दिवस को मातृ -पितृ दिवस के रूप में आधिकारिक तौर पर छत्तीसढ़ में मनाने के लिए घोषित किया।
वैसे तो छत्तीसगढ़ में 14 फरवरी को मातृ पितृ दिवस के रूप में 2012 से पूरा राज्य मानते आरहा है। वैसे तो मातृ पितृ दिवस की शुरुवात जेल में बैठे आसाराम बापू ने की थी।
इस व्यवस्था को पूरी तरीके से लागु करने के लिए छत्तीसगढ़ लोक शिक्षण संचालनालय Directorate of Public Instructions (DPI) ने वर्ष 2017 में घोषित किया कि मातृ पितृ दिवस प्रतिवर्ष 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे के दिन मनाया जायेगा।
सरकार ने मातृ पितृ दिवस का दिन पालन करने के लिए 2013-2014 में सर्कुलर भी पास करवाया था।

अंग्रेजी बोलना कैसे सीखें?

हमारे देश India में English सिखने का एक अलग ही Importance है। नए भारत में इसकी आवश्यकता दिन ब दिन बढ़ते चले जा रहा है।
अंग्रेजी भाषा विश्व भर में सबसे ज्यादा बोली जानी वाली भाषा है। हमारे देश में अन्य-अन्य राज्य में कई भाषाओँ का बोलने में उपयोग होता है। लेकिन तब ही ऐसा कोई राज्य या जगह नहीं होगा जहाँ English का उपयोग ना होता हो। आप किसी भी Government या Non-Government Office में चले जाईये अंग्रेजी में काम और बातचीत करते लोग आपको दिख जायेंगे।
अंग्रेजी एक ऐसी भाषा है जो आपको आगे बढ़ने की एक नयी उम्मीद देता है और दुसरे देशों के लोगों से जुड़ने की काबिलियत देता है। हम यह नहीं कह रह की आप अपने मातृ भाषा को भूल जाएँ या वो ख़राब है, हम यह कहना चाह रहे हैं की आप अपने Home Languages के साथ-साथ English को भी बोलना लिखना सीखें।
आज के इस Technology के युग में अंग्रेजी की बहुत आवश्यकता है। यहाँ तक की Parliament में भी अंग्रेजी भाषा को एक Official भाषा के रूप में मान्यता दिया है।
अगर आप मात्र अपने राज्य की भाषा बोलना या लिखना जानते हैं तो आप अपने राज्य तक ही सिमित हैं, अगर आप हिंदी बोलना जानते हैं तो आप की पहुँच भारत के कोने-कोने तक होगी पर अगर आप अंग्रेजी बोलना और लिखना सिख जाते हैं जो आप विश्व के कोने-कोने तक आपनी बात पहुंचा सकते हैं।
अगर आपकी English अच्छी नहीं है तो चिंता ना करें आज इस पोस्ट से आपको कुछ ऐसे Tips बताएँगे जो आपको English सिखने के पहले Step में बहुत मदद होंगे और इससे आपका उत्साह भी बढेगा।

अंग्रेजी बोलना सिखने के लिए 5 मुख्य नियम?

 #1 अगर English में बात करना चाहते हैं तो Grammar पर ध्यान देना बंद करें

Grammar पर ध्यान ना देने वाला बात वैसे सुनाने में तो बड़ा ही अजीब लगता है पर यह सही है। यह Spoken English सिखने का पहला Step है। अगर आप Student हैं और Engilsh में आपको Exam देना है तो आपको Grammar पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है पर अगर आपको English बोलना है तो Grammar की जरूरत नहीं है।
English में बोलते समय Grammar पर ध्यान देने से आप Confuse हो जायेंगे और उसके कारण आपका अंग्रेजी में बात करना Slow हो जायेगा। आपका ध्यान Grammar के नियमों पर होने के कारण आप बोलते समय घबराने लगेंगे जिसके कारन आप Fluent English नहीं बोल पाएंगे।
आपको यह जान कर हैरानी होगी कि दुनिया में मात्र 20% अंग्रेजी बोलने वालों को ही Grammar का सही Knowledge है और बाकि साब बिना Grammar लगाये बात करते हैं। इन 20% में जो लोग खासकर आते हैं वे Teachers और Students होते हैं जो बड़े Universities से जुड़े हैं जबकि बाकी 80% अंग्रेजी बोलने वाले व्यक्ति बड़े Speakers और साधारण लोग होते हैं।
अगर आप इस चीज को Check करना चाहें तो ध्यान से किसी TV पर बड़े Speaker के English Speech को सुन सकते हैं। वहां आपको ज़रूर 90% लोगों के English Speaking में आपको ढेर साड़ी Grammar में गलतियां मिल जाएगी। पर इसका मतलब यह नहीं है की उनको English बोलना नहीं आता है। Spoken English में आपको दो चीजों का ध्यान रखना है कुछ SimpleEnglish के Words और Confidence से बात करने की जरूरत है।

#2 English के Phrase पढ़ें

लोग English के शब्दों(Vocabulary) पर ज्यादा ध्यान देते हैं और उनको जोड़ कर अच्छे Sentence बनाने की कोशिश करते हैं। पर ऐसा करने से वे कोई अच्छा Sentence बना नहीं पाते हैं। ऐसा इस लिए होता है क्योंकि वे शुरुआत में Phrases पर ध्यान नहीं देते हैं। जब कोई भी बच्चा पहली बार किसी भी भाषा को बोलना सीखता है Words और वाक्यांश/वाक्य (Phrase) दोने एक साथ सीखता है इसीलिए वो झट से उस भाषा को सिख लेता है। इसलिए सबसे पहले आपको English के Phrase सिखने होंगे।
अगर आपको 1000 अंग्रेजी शब्द पता हैं, तो शायद ही आप एक अच्छा Sentence बना पाएंगे पर अगर आप एक Phrase जानते हैं तो आप 100 से भी अधिक सही Sentence आसानी से बना सकते हैं।

#3 English सिखने के साथ-साथ बोलने का Practice करना भी आवश्यक है

पढना, सुनना, और बोलना किसी भी भाषा को सिखने के लिए बहुत आवश्यक है लेकिन अगर आपको मक्खन के जैसे अंग्रेजी बोलना सीखना है तो Speaking पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। जिस प्रकार बच्चे पहले बोलना सीखते हैं उसके बाद पढना और आखरी में लिखना उसी प्रकार English बोलना सिखने के लिए भी यह क्रम अनुसार होना बहुत आवश्यक है – सुनना < बोलना < पढना < लिखना
पहले मुश्किल की बात तो यह है की स्कूलों में पहले पढना < लिखना < सुनना < बोलना सिखाया जाता है जिसकी वजह से English बोलने में मुश्किल होती है। दूसरी मुश्किल की बात यह है कि बहुत सारे लोग पढ़ते भी हैं और सुनते भी हैं पर बोलने की Practice नहीं करते। इसलिए जितना हो सके School, Office और यहाँ तक की घर में भी English में बात करने की कोशिश करें। इससे English बोलने के लिए Confidence और Motivation दोनो आपके अन्दर Develop होगा।

#4 English बोलने के लिए Practice कैसे Start करें?

किसी भी भाषा को सिखने के लिए आपको Highly Talanted होने की ज़रुरत नहीं बल्कि उस भाषा से घिरे होने की आवश्यकता होती है। हम अपनी मातृ भाषा अपने आप सिख जाते हैं यह इसका सबसे अच्छा उदहारण है। घर में हमेशा एक ही भाषा को सुनने बोलने के कारण ही यह प्रभाव पड़ता है। भले ही कोई व्यक्ति जितना भी मुर्ख हो या मानसिक रूप से पीड़ित हो उसे कोई ना कोई एक भाषा बोलना आता ही है।
कुछ लोग दुसरे देशों में पढाई करके भी English बोलना ठीक से सिख नहीं पाते। इसका एक सबसे बड़ा कारण होता है वे उन देशों में भी रहते समय अपने देश के कुछ दोस्तों से मिलते हैं उनके साथ अपने Local भाषा में बात करते हैं जिसके कारण वे English  ठीक से सिख नहीं पाते।
आपको बस जरूरत है कुछ ऐसे मित्रों, परिवार वालों की जो आपसे हमेशा English में बात करें और बस उसके बाद देखिये आप कितनी जल्दी अंग्रेजी बोलना सीखते हैं।

#5 English सिखने के लिए सही Source का उपयोग लें

Practice के विषय में तो हम बात कर ही चुके हैं की आप जितना Practice करेंगे उतना ही आप सीखेंगे। पर अगर आप किसी गलत English Sentence को अगर सिख रहे हैं बार-बार तो वो भी सही नहीं है। English सिखने के लिए आपको सही English Books, CDs या किसी भी Online Source की आवश्यकता होती है।
एक English ना जानने वाले व्यक्ति के साथ अंग्रेजी सिकना अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का प्रभाव डाल सकता है। English बोलते समय आपको क्या अच्छा है और क्या बुरा इसकी पहचान करना आना चाहिए। एक दुसरे से English सिखने से आप गलतियां भी ढूंढ सकते हैं और जल्द से जल्द Spoken English भी सिख सकते हैं।
यह वो 5 महत्वपूर्ण नियम हैं जो Spoken English सिखने के लिए बहुत आवश्यक हैं। अगर आपको यह Points अच्छे लगे हों तो हमें




Friday, 26 January 2018

COMPETITION KI TAYYARI KAISE KARE

GOOD EVENING FRIENDS

AAJ MAI AAPKO BATANE JA RAHA HU KI COMPETITION KI TAYYARI KAISE KARE
DOSTO AJKAL KAI AISI WEBSITES H JO AAPKO COMPETITION KI TAYYARI KARNE ME BHARPOOR SAHYOG PRADAN KARTI H.
NEECHE MAI KUCH AISI HI WEBSITES KE BARE ME BATANE JA RAHA HU JINKE DWARA AAP BINA FEES BHARE COMPTETION KI BEHTAR TAYYARI KA APNE BHAVISHYA KO UJJWAL BANA SAKTE H.
  • http://www.sarkarinaukricareer.in/: This website lists several Government as well as Bank exams. It has recruitment notices and individual bank notifications also. Candidates can find all the information like notification dates, syllabus topics, news, tips and tricks etc., about the IBPS, SSC Exams etc.
  • http://www.talentsprint.com/bank/notifications.dpl: Get latest and past notifications for all SBI, IBPS, SSC, LIC, RRB NTPC  exams in simple format without any ads.
  • http://www.ibpsexam.org/: This website lists notifications on IBPS, RBI, SBI and others. It also gives information on LIC AAO Exam. Here you can get unique study materials, syllabus, interview Q&A and tips and tricks.
  • http://www.indgovtjobs.in/: This blog provides information about Government and banking recruitment and exam notifications.
  • http://www.bankexamsindia.com/ This website provides information about upcoming bank jobs in India. It also provides brief details about the exam pattern and study material. 
  • http://www.ibpsexamguru.in/: This website has all the details about IBPS PO, Clerk, SBI PO and SBI Specialist Exam. The website also has mock online tests for students to practice. The website also offers several Ebooks for download useful to students.
  • http://careeradda.co.in/: Apart from notifications, this website provides capsules, quiz, notes, motivational stories and forum discussion to help aspirants to prepare for exam and interviews.

Websites Offering Free Exam Content

After knowing the notification dates, comes the preparation stage for competitive exams. One subject that is the most dynamic yet scoring is the Current Affairs and General Knowledge section. For this, students need to have updated knowledge about the latest happening and news around the world. To help students, there are a few websites which give free access to updated current affairs information:
  • http://www.ibpsexamguru.in/: This website has a dedicated section for Current Affairs.
  • http://www.talentsprint.com/bank/free-prep/quantitative-aptitude.dpl: provides simple topic specific video, ebook, live class and mock test sections without any ads. 
  • http://www.jagranjosh.com/: This website caters to the aspirants preparing for different competitive exams at various levels. The Current Affairs and the GK section of the website are the most popular among the aspirants. This website covers many sections such as banking exams, SSC etc. One can even find previous year’s question papers, study material, tips and strategies to crack the examination.
  • http://www.gktoday.in/: It is a leading website providing valuable information pertaining to GK and Current Affairs.
  • http://www.indiabix.com/: This website offers huge repository of subject wise information in the form of questions and answers for Bank, Government and other competitive exams.
  • http://www.gkduniya.com/: On this website, one can get all the updated current affairs till current date of the current month, as it is quite promptly updated. It has GK question answer as well. This website also gives brief knowledge about aptitude, reasoning, world-wide general knowledge and latest Government jobs.

Websites For Free Online Tests

Mock tests/online tests often help the students to prepare well. They also help them in knowing what they are lacking in terms of speed and preparation. Few websites which make this possible are:

Popular User Forums/Communities

While preparing for the competitive exams, there are times when you wish to discuss some problems or aspects related to the syllabus with the fellow aspirants. Well, there are websites for that as well:
  • http://www.jagranjosh.com/: Here students can discuss freely and get answer to their queries.
  • https://www.facebook.com/IbpsExamGuru: Here, students can get all the updates related to bank job notifications (SBI and IBPS) and discuss topics freely with fellow aspirants.
  • http://careeradda.co.in/: It is a platform where aspirants can have systematic discussions, upload documents, initiate polls and can have private chat with each other regarding the competitive exams.
  • http://blog.talentsprint.com/ : This is a place for you to catch up on blog posts that provide not just important information but also tips, techniques and How-To topics.

Useful Videos/Live Classes

Today, in the age of e-learning and internet, one can make use of the various online videos and live classes to crack the bank and SSC exams easily. Here is one institute whose online classes are quite popular.
  • youtube.com/tsbankerschoice: TalentSprint’s online preparation program for Bank and SSC Exam can help aspirants to crack these exams ten times more confidently and increase their chances for selection. It has videos of all the topics of all the subjects to help students prepare well for the competitive exams. Along with the videos, there are e-practice papers and reference material as well.
These are our top picks for Bank and Government exam information on the internet. However, aspirants need to take their own precaution and discretion in consuming the content published on these websites.

Thursday, 25 January 2018

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते

एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.

संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर  के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब  तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.
इस कहानी से क्या सीख मिलती है:
  • कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
  • जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए.
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KHELO INDIA


HELLO FRIENDS,
Aaj hum aapko batane jarahe hai ek aise khel ke bare me jise khel kar aap apni baudhhik chamta ka vikash kar sakte h.
yah khel bahut hi aham bhumika nibhayega apki competition level ki tayari me.
to dosto yah khel jarur khele.
Is khel ko khelne se aap ko ek or fayda yah h ki agar aap isme winner hote h to aapko ek nishchit uphar bhi diya jayega.
niche di hui link pe click kare or apne gyan ko or badhawa de

.https://www.kheloindia.gov.in/


Agar aapko hamare dwara bataee gaye bate pasand ati ho to plz like or comment karte rahe.

गणतन्त्र दिवस (भारत)

इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था।

Funny Math Answers


In funny math answers we will learn how to solve answers in tricky method. Students will gain subject knowledge and can also spend their time in practicing the quicker method joyfully. In the funny math, students can also learn how to use the different tricks in different types of math problems. Let us follow some of the tricky and quicker method problems in the following below:


For Example:

1.
A man spends 1/5 of his salary on food, 1/10 of his salary on house rent and 3/5 of his salary on clothes. He still has $18000 left with him. Find his salary.

Solution:

The expenditure incurred on each item is expressed as part of the total amount (salary), so it is an independent activity.



In general for independent activities

[1 – (x1/y1 + x2/y2 + x3/y3)] × Total amount = Balance amount

[1 – (1/5 + 1/10 + 3/5)] × Total salary = $18000

[1 – 9/10] × Total salary = $18000

Therefore total salary = $18000 × 10 = $180000



2. A number when divided by 899 gives a remainder 63. What remainder will be obtained by dividing the same number by 29.

Solution:
63 ÷ 29
Funny Math Answers



Therefore required answer = 5.

3. The sum of two numbers is 75 and their difference is 20. Find the difference of their squares.

Solution:

If the sum of two numbers is x and their difference is y, then the difference of their squares is xy.

Here x= 75 and y = 20

75 × 20 = 1500


4. The difference between the squares of two consecutive numbers is 37. Find the numbers.

Solution:

If the difference between the squares of two consecutive numbers is x, then the numbers are (x-1)/2 and (x+1)/2

(37-1)/2 and (37+1)/2

36/2 and 38/2

Therefore the required answer = 18 and 19.

5. Two consecutive numbers are 8 and 9. Find the difference of their squares.

Solution:

If the two consecutive numbers are x and y, then the difference of their squares is given by x + y.

Here, x = 8 and y = 9.

8 + 9

Therefore the required answer = 17

LIST OF IMPORTANT MATH FORMULAS AND RESULTS


Algebra:


● Laws of Indices:

(i) aᵐ ∙ aⁿ = aᵐ + ⁿ

(ii) aᵐ/aⁿ = aᵐ - ⁿ

(iii) (aᵐ)ⁿ = aᵐⁿ

(iv) a = 1 (a ≠ 0).

(v) a-ⁿ = 1/aⁿ

(vi) ⁿ√aᵐ = aᵐ/ⁿ

(vii) (ab)ᵐ = aᵐ ∙ bⁿ.

(viii) (a/b)ᵐ = aᵐ/bⁿ

(ix) If aᵐ = bᵐ (m ≠ 0), then a = b.

(x) If aᵐ = aⁿ then m = n.

● Surds:

(i) The surd conjugate of √a + √b (or a + √b) is √a - √b (or a - √b) and conversely.

(ii) If a is rational, √b is a surd and a + √b (or, a - √b) = 0 then a = 0 and b = 0.

(iii) If a and x are rational, √b and √y are surds and a + √b = x + √y then a = x and b = y.


● Complex Numbers:

(i) The symbol z = (x, y) = x + iy where x, y are real and i = √-1, is called a complex (or, imaginary) quantity;x is called the real part and y, the imaginary part of the complex number z = x + iy.

(ii) If z = x + iy then z = x - iy and conversely; here, z is the complex conjugate of z.

(iii) If z = x+ iy then

(a) mod. z (or, | z | or, | x + iy | ) = + √(x² + y²) and

(b) amp. z (or, arg. z) = Ф = tan
y/x (-π < Ф ≤ π).

(iv) The modulus - amplitude form of a complex quantity z is

z = r (cosф + i sinф); here, r = | z | and ф = arg. z (-π < Ф <= π).

(v) | z | = | -z | = z ∙ z = √ (x² + y²).

(vi) If x + iy= 0 then x = 0 and y = 0(x,y are real).

(vii) If x + iy = p + iq then x = p and y = q(x, y, p and q all are real).

(viii) i = √-1, i² = -1, i³ = -i, and i⁴ = 1.

(ix) | z₁ + z₂| ≤ | z₁ | + | z₂ |.

(x) | z₁ z₂ | = | z₁ | ∙ | z₂ |.

(xi) | z₁/z₂| = | z₁ |/| z₂ |.

(xii) (a) arg. (z₁ z₂) = arg. z₁ + arg. z₂ + m

(b) arg. (z₁/z₂) = arg. z₁ - arg. z₂ + m where m = 0 or, 2π or, (- 2π).

(xiii) If ω be the imaginary cube root of unity then ω = ½ (- 1 + √3i) or, ω = ½ (-1 - √3i)

(xiv) ω³ = 1 and 1 + ω + ω² = 0


● Variation:

(i) If x varies directly as y, we write x ∝ y or, x = ky where k is a constant of variation.

(ii) If x varies inversely as y, we write x ∝ 1/y or, x = m ∙ (1/y) where m is a constant of variation.

(iii) If x ∝ y when z is constant and x ∝ z when y is constant then x ∝ yz when both y and z vary.


● Arithmetical Progression (A.P.):


(i) The general form of an A. P. is a, a + d, a + 2d, a + 3d,.....

where a is the first term and d, the common difference of the A.P.

(ii) The nth term of the above A.P. is t₀ = a + (n - 1)d.

(iii) The sum of first n terns of the above A.P. is s = n/2 (a + l) = (No. of terms/2)[1st term + last term] or, S = ⁿ/₂ [2a + (n - 1) d]

(iv) The arithmetic mean between two given numbers a and b is (a + b)/2.

(v) 1 + 2 + 3 + ...... + n = [n(n + 1)]/2.

(vi) 1² + 2² + 3² +……………. + n² = [n(n+ 1)(2n+ 1)]/6.

(vii) 1³ + 2³ + 3³ + . . . . + n³ = [{n(n + 1)}/2 ]².

मूल्यांकन दूरदर्शन का

मूल्यांकन दूरदर्शन का
दूरदर्शन आधुनिक युग का एक ऐसा साधन है जो मानव को मनोरंजन देने के साथ – साथ प्रेरणा और शिक्षा भी प्रदान करता है । मनुष्य चाहे किसी भी आयु वर्ग या आर्य वर्ग अथवा किसी भी देश का वासी हो सभी के मन में एतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थानों को देखने की लालसा रहती है ।
त्रेता युग में महाभारत के युद्ध के समय संजय ने घर बैठे – बैठे ही अपनी हृद्यादृष्टि से अंधे ध्रतराष्ट्र को युद्ध के हाथों का आँखों देखा हाल सुनाया था । इस घटना पर सहसा विशवास नहीं होता कि इस प्रकार का कोई दिव्या पुरुष रहा होगा जिसने अपनी दिव्यदृष्टि से युद्ध की घटनाओं को साक्षात् देखा होगा । पर जब हम आज विज्ञान के उपहार टी. वी पर दृष्टिपात करते हैं तो लगता है वह भी संजय की भांति दिव्यदृष्टि से यूक्त है जो हमें घर बैठे ही देश – विदेश की घटनाओं को अपनी आँखों से दिखा देता है । और दिन – रात हमारा मनोरंजन करता है । आज तो टी.वी प्रत्येक परिवार की आवश्यकता बन गया है ।
दूरदर्शन मनुष्य जाती के लिए वरदान है । मनोरंजन के क्षेत्र में इसने क्रांति उपस्थित कर दी है । इस पर दिखाए जाने वाले कार्यकर्मों में देश – विदेश की घटनाओं का सीधा प्रसारण किया जाता है । जल, थल, नभ की गहरायों के रहस्यों को उजागर किया जाता है । विज्ञान तथा इतिहास की जानकारी प्रदान की जाती है । दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले अनेक कार्यक्रम जनजागरण करने में भी सक्षम है । दूरदर्शन का प्रभाव इतना व्यापक होता है कि अनेक सामाजिक बुराइयों के प्रति जनाक्रोश जाग्रत करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
छात्रों के लिए तो इसकी और भी उपयोगिता है। आजकल तो यह शिक्षा का माध्यम भी बनाया है। दूरदर्शन पर विज्ञान, इतिहास, भूगोल, गणित जैसे नीरस तथा दुरूह विषयों की शिक्षा अत्यन्त रुचिकर ढंग से दी जाती है। भारत में यू.जी.सी. के कार्यक्रम इस बात का प्रमाण हैं। प्रकर्ति के रहस्य जिन्हें हम कभी नहीं देख पाते, आज डिस्कवरी चैनल के माध्यम से दिखाए जा रहे हैं। इतिहास की एसी घटनाएँ जिनकी जानकारी प्राप्त करना कठिन हैं, दूरदर्शन के माध्यमों से दिखाना संभव हो गया है। देश – विदेश की संस्कृति का परिचय दूरदर्शन पर घर बैठे ही प्राप्त किया जा सकता है। अन्तराष्ट्रीय खेल-कूद समारोह हों या वर्ल्डकप का कोई मैच, दूरदर्शन पर देख पाना संभव हो गया है फिर चाहे वह कहीं आया भूकम्प हो या सुनामी लहरों का
प्रोकोप, किसी ज्वालामुखी का कहर हो या फिर कोई अन्य समारोह – सब विश्व को एक परिवार बना दिया है तथा ‘वसुधेव कुटुम्बकम्’ का आदर्श चरितार्थ कर दिया है।
यह तो रही दूरदर्शन की उपयोगिता की बात। व्यवहार में यह देखने में आया है कि इतना उपयोगी दूरदर्शन आज छात्रों के लिए सहायक न बनकर एक बाधा के रूप में सामने आता है। आज का युवावर्ग दूरदर्शन का इतना आदि हो गया है कि वह अपने उद्देश्य को भूल बैठा है। वह अपनी पढाई – लिखाई को विस्म्रत करके दिन रात दूरदर्शन से चिपका रहता है जिससे उसके अध्ययन में तो बाधा पड़ती ही है, उसकी आँखों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। आज जिस भी अभिभावक से बात कीजिए, उन्हें यही शिकायत ओगी कि उनके बच्चे टी.वी. देखते रहते हैं और पढ़ने से जी चुराते है।
बात यहीं तक हो तो इतनी गंबीर प्रतीत नहीं होती। बात इससे भी कहीं अधीक भयंकर है। आजकल दूरदर्शन पर अनेक विदेशी चैनल भी आ गये हैं जो मनोरंजन के नाम पर सांस्कृतिक प्रदुषण फेला रहे हैं। उन पर दिखाए जाने वाल अश्लील भददे, अनैतिक तथा कामोत्तेजक दृश्यों को देखकर भारत के युवा अपनी सस्कृति को ही भूल बैठे हैं तथा विदेशी संस्कृति की चकाचौंध से दिशा भ्रमित होकर नैतिक मूल्यों से दूर होते जा रहे हैं । अनेक प्रकार की बुराइयाँ इन्हीं कार्यकर्मों के कारण पनप रही हैं। मद्यपान, आलिंगन, चुंबन, अर्धनग्न कैबरे नृत्य जैसे दृश्य युवाओं के कोमल मन पर ऐसा दुष्प्रभाव डालते हैं कि उनका भारतीय संस्कृति के उच्चादाशों से भटक जाना स्वाभाविक है।

दूरदर्शन वास्तव में मनुष्य का मनोरंजन का साधन है। यदि दूरदर्शन पर दिखाए जाने से कार्यक्रम सांस्कृतिक प्रदुषण फेला भी रहे हैं, तो इसमें दूरदर्शन का क्या दोष? यह दोष तो उन कार्यक्रमों का है । अतः इसे कार्यक्रमों पर अंकुश लानागा चाहिए तथा दूरदर्शन के सही अर्थों में ज्ञानवृद्धि, जनजागरण तथा सामाजिक चेतना जगाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहिए । सरकार को इस प्रकार के चैनेलों पर अंकुश लगना चाहिए 

यात्रा का महत्व

देशाटन
या
देश-विदेश की सैर
या
यात्रा का महत्व
देश +अटन इन दो शब्दों में संधि होने से बना है एक नया शब्द – देशाटन। ‘देश’ किसी ऐसे विशेष भू – भाग को कहा जाता है, जिसे प्रकृति ने अपने विभिन्न और विविध रूपों वाले, विभिन्न और विविध प्रकार की सम्पत्तियों से संपन्न बनाया होता है। उन्हीं के कारण  एक ही देश का भाग या प्रान्त दूसरे भाग या प्रान्त से अलग कहलाता है। इसे हम प्रकृति द्वारा देश का भोगोलिक विभाग और वैविधय भी कहलाता है, जो अपने आप में संपूर्ण एवं महतवपूर्ण हुआ करता है।
देशाटन में दूसरा मुख्या शब्द है – ‘ अटन’ जिस का सामान्य अर्थ है , घूमना -फिरना और तरह – तरह के दृश्यों का अवलोकन करना। इस प्रकार ‘देश ‘ और ‘ अटन’ से मिलकर बने इस शब्द ‘ देशाटन ‘ का अपना व्यापक और विशेषयज्ञ अर्थ हो जायेगा प्राकृतिक और भौगोलिक विभिन्नताओं – विविधताओं से संपन्न अपने देश के अलग – अलग भू -भागों, प्रांतों का भ्रमण करके वहां के रूप – रंग, रहन -सहन, रीती – नीतियों, आदि को दर्शन करना उन्हें निकट से देख सुनकर वहां की विशेष्यज्ञाताओं को  जानना। जहाँ तक सीमित या व्यापक अर्थों में देशाटन के उद्देश्य प्रयोजन या लाभ आदि का प्रश्न है वह चाहे अपने देश के विभिन्न भागों या प्रांतों का किया जाये अथवा संसार के विभिन्न देशों का उनमे समानता ही रहती है। व्यक्ति दोनों दशाओं में  समान रूप से लाभान्वित होता है, जबकि देशाटन से विभिन्न देशों की विशेषताएं देखि और समझी जा सकती है।
अटन या भ्रमण चाहे देश में किया जाये चाहे सारी धरती पर बसे देशों में, अनेक लाभ निश्चित रूप से प्राप्त हुआ करे हैं। देशाटन से मनोरंजन का पहला प्रमुख एवं स्वास्थ्य लाभ तो हुआ ही करता है, व्यक्ति के मन- मष्तिस्क में जो अनेक प्रकार  की जिज्ञासाजन्य कृतियां रहा करती हैं, उनका हल भी होता है। इसी प्रकार जैसे कि कहावत बनी हुई है ऊँठ को अपनी उचाई की वास्तविकता का एहसास तभी हो जाता है, जब वह पहाड़ के निचे से गुजरता होता है अर्थात अपने – आप को बड़ा विद्वान  ज्ञानवान और जानकार मानने वाला व्यक्ति देश – विदेश में घूम कर जान पता है कि वास्तव में वह कितना अल्पज्ञ है। इस प्रकार देशाटन व्यक्ति के अपने सम्बन्ध में पास रखे गए भ्रम – निवारण का भी एक कारन बनकर उसे जीवन की वस्तविक धरातल पर ले अपने का सुखद, शांतिप्रद कारण बन जाया करता है।
देशाटन करने वाला व्यक्ति प्रकृति के विभिन्न और विविध स्वरूपों के साथ साक्षात्कार कर पाने का सौभाग्य भी सहज ही प्राप्त कर लेता है। वह देख पाता है कि प्रकृति ने कहीं तो हरी – भरी और बर्फानी पर्वतमालाओं से धरती को ढक रखा है। वहां  की पर्वतमालाओं की बर्फ – ढंकी चोटियां इतनी ऊँची हैं कि उन्हें पार कर पाना यदि संभव नहीं तो कठिनतम कार्य आवश्यक है। इसी प्रकार कहीं रूखी – सूखी गरम  और नंगी पर्वतमालाएं हैं जहाँ छितराये पेड़ – पौधें, वनस्पतियों आदि स्वयं भी छाया  के  लिए तरसा करती हैं लम्बे – चौड़े, धुल – माटी आँखों – सिर में झोंकने को आतुर रेतीले टीलों  वाले रेगिस्तान दिखाई देकर प्रकर्ति की बनावट कर आश्चर्य करने को बाध्य कर दिया करते हैं कहीं आर – पार , दृष्टि रेगिस्तान दिखाई देकर प्रकृति की  बनावट कर आश्चर्य करने को बाध्य कर दिया करते हैं कहीं आर – पार, दृष्टि सीमा के भी उस पार तक फैले सागर – जल का विस्तार अपनी उत्ताल तरंगों से मन को मोह लिया करता है।

इसी प्रकार कहीं तो हमेशा बसंत का गुलज़ार रहता है और कहीं सर्दी के प्रकोप से पल भर के लिए मुक्ति नहीं मिल पाती। कहीं वर्षारानी की रिमझिम पायल बोर कर देने की सीमा तक बजती रहती है और कहीं सख़्त गर्मी से व्याकुल चेतना उसकी  कुछ बौछारें पाने को तरस जाती हैं। देशाटन करके ही इन विविधताओं को जाना और अनुभव किया जा सकता है। देशाटन करते समय विभिन्न रंग – रूप और बनावट वाले लोग तो देखने – सुनने को मिलता ही हैं। उनके रंग – बिरंगे वेश – भूषा, रहन  – सहन, रीती – रिवाजों, उत्सव – त्योहारों, भाषा- बोलियों, सभ्यता, संस्कृतियों के रूप भी उजागर होकर मन को  मुग्ध कर लिया करते हैं । इस सबसे अटन करने वाला व्यक्ति विभिन्न और विविध जानकारियो का चलता – फिरता ज्ञान भंडार बन जाया करता है । वह सुख – दुःख की हर स्तिथि का सामना कर पाने में समर्थ, उदार- ह्रदय सबकी सहायता करने को हमेशा तत्पर रहना भी सीख  लेता है । इसलिए अवसर और सुविधा जुटाकर देश – विदेश का अटन अवश्य  करना चाहिए । मानवीयता को  विस्तार देशाटन का सर्वाधिक श्रेष्ठ लाभ  कहा – माना जा सकता है ।
समय अनमोल है।
या
समय का सदुपयोग
समय चक्र की गति बड़ी अदभुद है। इसकी गति में अबादता है। समय का चक्र निरंतर गतिशील रहता है रुकना इसका धर्म नहीं है
“मैं समय हूँ
मैं किसी की प्रतीक्षा नहीं करता 
में निरंतर गतिशील हूँ
मेरा बिता हुआ एक भी क्षण लौट कर नहीं आता है। 
जिसने भी मेरा निरादर किया 
वह हाथ मल्ता रह जाता है। 
सिर धुन- धुन कर पछताता है। “
समय के बारे में कवि की उपयुर्क्त पंक्तियाँ सत्य है विश्व में समय सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान धन माना गया है। यदि मनुष्य की अन्य धन सम्पति नष्ट हो जाए तो संभव है वह परिश्रम, प्रयत्न एवं संघर्ष से पुनः प्राप्त कर सकता है किन्तु बीता हुआ समय वापस नहीं आता। इसी कारण समय को सर्वाधिक मूल्यवान धन मानकर उसका सदुपयोग करने की बात कही जाती है।
समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। वह निरंतर गतिशील रहता है कुछ लोग यह कहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं कि समय आया नहीं करता वह तो निरंतर जाता रहता है और सरपट भागा जा रहा है। हम निरंतर कर्म करते रहकर ही उसे अच्छा बना सकते हैं। अच्छे कर्म करके, स्वयं अच्छे रहकर ही समय को अच्छा, अपने लिए प्रगतिशील एवं सौभाग्यशाली बनाया जा सकता है। उसके सिवाय अन्य कोई गति नहीं। अन्य सभी बातें तो समय को व्यर्थ गंवाने वाली ही हुआ करती हैं। और बुरे कर्म तथा बुरे व्यवहार अच्छे समय को भी बुरा बना दिया करे हैं।
समय के सदुपयोग में ही जीवन की सफलता का रहस्य निहित है जो व्यक्ति समय का चक्र पहचान कर उचित ढंग से कार्य करें तो उसकी उन्नति में चार चाँद लग सकता हैं। कहते हैं हर आदमी के जीवन में एक क्षण या समय अवश्यक आया करता है कि व्यक्ति उसे पहचान – परख कर उस समय कार्य आरम्भ करें तो कोई कारण नहीं कि उसे सफलता न मिल पाए। समय का सदुपयोग करने का अधिकार सभी को समान रूप से मिला है। किसी का इस पर एकाधिकार नहीं है। संसार में जितने महापुरुष हुए हैं वे सभी समय के सदुपयोग करने के कारण ही उस मुकाम पर पहुंच सके है। काम को समय पर संपन्न करना ही सफलता का रहस्य है।
लोक – जीवन में कहावत प्रचलित है कि पलभर का चूका आदमी कोसों पिछड़ जाया करता है। उस उचित पथ को पहचान समय पर चल देने वाला आदमी अपनी मंजिल भी उचित एवं निश्चित रूप से पा लिया करता है। स्पष्ट है की जो चलेगा वो तो कहीं न कहीं पहुंच पायेगा। न चलने वाला मंजिल पाने के मात्र सपने ही देख सकता है , व्यवहार के स्तर पर उसकी परछाई का स्पर्श नहीं कर सकता। अतः तत्काल आरम्भ कर देना चाहिए। आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। अपने कर्तव्य धर्म को करने से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। कोई कार्य छोटा हो या बड़ा यह भी नहीं सोचना चाहिए। वास्तव में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं हुआ करता है। अच्छा और सावधान मनुष्य अपनी अच्छी नीयत, सद्व्यवहार और समय के सदुपयोग से छोटे या सामान्य कार्य को भी बड़ा और विशेष बना दिया करता है।
विश्व के आरम्भ से लेकर आज तक के मानव जो निरंतर रच रहा है, वह सब समय के सदुपयोग के ही संभव हुआ और हो रहा है। यदि महान  कार्य करके नाम यश पाने वाले लोग आज भी आज – कल करते हुए हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते तो जो सुख आनंद के तरह – तरह के साधन उपलब्ध हैं वे कतई और कभी न हो पाते। मनुष्य और पशु में यही तो वास्तविक अंतर और पहचान है कि मनुष्य समय को पहचान उसका सदुपयोग करना जनता है , जबकि पशु – पक्षियों के पास ऐसी पहचान – परक और कार्य शक्ति नहीं रहा करती।
मानव जीवन नहीं के एक धरा के सामान है जिस प्रकार नदी की धरा अबाध कटी से प्रवाहित होती रहती है ढीक उसी प्रकार मानव – जीवन की धरा भी अनेक उतर – चढ़ावों के गुजरती हुई गतिशील रहती है। प्रकर्ति का कण – कण हमें समय पालन की सीख देता है। अतः मनुष्य का कर्तव्य है जो बीत गया उसका रोना न रोये अर्थात वर्तमान और भविष्य का ध्यान करें इसलिए कहा है – ‘ बीती ताहि बिसर दे आगे की सुधि लेई ‘
एक – एक सांस लेने का अर्थ है समय की एक अंश कम हो जाना जीवन का कुछ छोटा होना और  मृत्यु की और एक – एक कदम बढ़ाते जाना। पता नहीं कब समय समाप्त हो जाये और मृत्यु आकर साँसों का अमूल्य खजाना समेत ले जाये। इसलिए महापुरुषों ने इस तथ्य को अच्छी तरह समझकर एक सांस या एक पल को न गवाने की बात कही है। संत कबीर का यह दोहा समय के सदुपयोग का महत्व प्रतिपादित करने वाला है।
” काल्ह करे सो आज कर, आज करे सो अब। 
पल मैं परले होयेगी, बहुरि करोगे कब। “


Monday, 22 January 2018

सूरदास | Surdas

सूरदास | Surdas

सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।
सूरदास की जन्मतिथि एवं जन्मस्थान के विषय में विद्वानों में मतभेद है। "साहित्य लहरी' सूर की लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में
निम्न पद मिलता है -
मुनि पुनि के रस लेख ।
दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख ।।
इसका अर्थ संवत् १६०७ वि० माना जाता है, अतएवं "साहित्य लहरी' का रचना काल संवत् १६०७ वि० है। इस ग्रन्थ से यह भी प्रमाणित होता है कि सूर के गुरु श्री बल्लभाचार्य थे। इस आधार पर सूरदास का जन्म सं० १५३५ वि० के लगभग ठहरता है, क्योंकि बल्लभ सम्प्रदाय की मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे और बल्लभाचार्य का जन्म उक्त संवत् की वैशाख् कृष्ण एकादशी को हुआ था। इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् १५३५ वि० समीचीन मानी जाती है। उनकी मृत्यु संवत् १६२० से १६४८ वि० के मध्य मान्य है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् १५४० वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् १६२० वि० के आसपास मानी जाती है।

जन्म स्थल
'चौरासी वैष्णव की वार्ता' के आधार पर उनका जन्म रुनकता अथवा रेणु का क्षेत्र (वर्तमान जिला आगरान्तर्गत) में हुआ था। मथुरा और आगरा के बीच गऊघाट पर ये निवास करते थे। बल्लभाचार्य से इनकी भेंट वहीं पर हुई थी। "भावप्रकाश' में सूर का जन्म स्थान सीही नामक ग्राम बताया गया है। वे सारस्वत ब्राह्मण थे और जन्म के अंधे थे।
"आइने अकबरी' में (संवत् १६५३ वि०) तथा "मुतखबुत-तवारीख' के अनुसार सूरदास को अकबर के दरबारी संगीतज्ञों में माना है।

अधिकतर विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में ये आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे।
खंजन नैन रुप मदमाते ।
अतिशय चारु चपल अनियारे,
पल पिंजरा न समाते ।।
चलि - चलि जात निकट स्रवनन के,
उलट-पुलट ताटंक फँदाते ।
"सूरदास' अंजन गुन अटके,
नतरु अबहिं उड़ जाते ।।

क्या सूरदास अंधे थे ?
सूरदास श्रीनाथ भ की "संस्कृतवार्ता मणिपाला', श्री हरिराय कृत "भाव-प्रकाश", श्री गोकुलनाथ की "निजवार्ता' आदि ग्रन्थों के आधार पर, जन्म के अन्धे माने गए हैं। लेकिन राधा-कृष्ण के रुप सौन्दर्य का सजीव चित्रण, नाना रंगों का वर्णन, सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता आदि गुणों के कारण अधिकतर वर्तमान विद्वान सूर को जन्मान्ध स्वीकार नहीं करते।"
श्यामसुन्दरदास ने इस सम्बन्ध में लिखा है - "सूर वास्तव में जन्मान्ध नहीं थे, क्योंकि श्रृंगार तथा रंग-रुपादि का जो वर्णन उन्होंने किया है वैसा कोई जन्मान्ध नहीं कर सकता।'' डॉक्टर हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है - "सूरसागर के कुछ पदों से यह ध्वनि अवश्य निकलती है कि सूरदास अपने को जन्म का अन्धा और कर्म का अभागा कहते हैं, पर सब समय इसके अक्षरार्थ को ही प्रधान नहीं मानना चाहिए।"

रचनाएं
सूरदास की रचनाओं में निम्नलिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं -

१ सूरसागर
२ सूरसारावली
३ साहित्य-लहरी
४ नल-दमयन्ती
५ ब्याहलो
उपरोक्त में अन्तिम दो ग्रंथ अप्राप्य हैं।
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के १६ ग्रन्थों का उल्लेख है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। इनमें प्रारम्भ के तीन ग्रंथ ही महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।

सूर के पद | Sur Ke Pad
सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें।

मुख दधि लेप किए


मन न भए दस-बीस - सूरदास के पद
मन न भए दस-बीस
ऊधौ मन न भए दस-बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग को अवराधै ईस॥

इंद्री सिथिल भई केसव बिनु ज्यों देही बिनु सीस।
आसा लागि रहत तन स्वासा जीवहिं कोटि बरीस॥

हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद
हरि संग खेलति हैं सब फाग।
इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।
सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।
बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।
डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।

रचनाकार:

 सूरदास | Surdas

हरि संग खेलति हैं सब फाग।
इहिं मिस करति प्रगट गोपी: उर अंतर को अनुराग।।
सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन।
बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन।।
डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग।
अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग।।
एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि।
छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि।।
मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई।
भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं।।
छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि।
सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि।।
दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद।
सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद।।

मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand


जन्म
प्रेमचन्द का जन्म ३१ जुलाई सन् १८८० को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। आपके पिता का नाम अजायब राय था। वह डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे।
जीवन
धनपतराय की उम्र जब केवल आठ साल की थी तो माता के स्वर्गवास हो जाने के बाद से अपने जीवन के अन्त तक लगातार विषम परिस्थितियों का सामना धनपतराय को करना पड़ा। पिताजी ने दूसरी शादी कर ली जिसके कारण बालक प्रेम व स्नेह को चाहते हुए भी ना पा सका। आपका जीवन गरीबी में ही पला। कहा जाता है कि आपके घर में भयंकर गरीबी थी। पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन मिलता था। इन सबके अलावा घर में सौतेली माँ का व्यवहार भी हालत को खस्ता करने वाला था।
शादी
आपके पिता ने केवल १५ साल की आयू में आपका विवाह करा दिया। पत्नी उम्र में आपसे बड़ी और बदसूरत थी। पत्नी की सूरत और उसके जबान ने आपके जले पर नमक का काम किया। आप स्वयं लिखते हैं, "उम्र में वह मुझसे ज्यादा थी। जब मैंने उसकी सूरत देखी तो मेरा खून सूख गया।......." उसके साथ - साथ जबान की भी मीठी न थी। आपने अपनी शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखा है "पिताजी ने जीवन के अन्तिम सालों में एक ठोकर खाई और स्वयं तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया: मेरी शादी बिना सोंचे समझे कर डाली।" हालांकि आपके पिताजी को भी बाद में इसका एहसास हुआ और काफी अफसोस किया।
विवाह के एक साल बाद ही पिताजी का देहान्त हो गया। अचानक आपके सिर पर पूरे घर का बोझ आ गया। एक साथ पाँच लोगों का खर्चा सहन करना पड़ा। पाँच लोगों में विमाता, उसके दो बच्चे पत्नी और स्वयं। प्रेमचन्द की आर्थिक विपत्तियों का अनुमान इस घटना से लगाया जा सकता है कि पैसे के अभाव में उन्हें अपना कोट बेचना पड़ा और पुस्तकें बेचनी पड़ी। एक दिन ऐसी हालत हो गई कि वे अपनी सारी पुस्तकों को लेकर एक बुकसेलर के पास पहुंच गए। वहाँ एक हेडमास्टर मिले जिन्होंने आपको अपने स्कूल में अध्यापक पद पर नियुक्त किया।
शिक्षा
अपनी गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचन्द ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में आप अपने गाँव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पाँव जाया करते थे। इसी बीच पिता का देहान्त हो गया। पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वकील बनना चाहते थे। मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्कूल आने - जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहाँ ट्यूशन पकड़ लिया और उसी के घर एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन का पाँच रुपया मिलता था। पाँच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को और दो रुपये से अपनी जिन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते रहे। इस दो रुपये से क्या होता महीना भर तंगी और अभाव का जीवन बिताते थे। इन्हीं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में मैट्रिक पास किया।
साहित्यिक रुचि
गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीड़न जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी प्रेमचन्द के साहित्य की ओर उनके झुकाव को रोक न सकी। प्रेमचन्द जब मिडिल में थे तभी से आपने उपन्यास पढ़ना आरंभ कर दिया था। आपको बचपन से ही उर्दू आती थी। आप पर नॉवल और उर्दू उपन्यास का ऐसा उन्माद छाया कि आप बुकसेलर की दुकान पर बैठकर ही सब नॉवल पढ़ गए। आपने दो - तीन साल के अन्दर ही सैकड़ों नॉवेलों को पढ़ डाला।
आपने बचपन में ही उर्दू के समकालीन उपन्यासकार सरुर मोलमा शार, रतन नाथ सरशार आदि के दीवाने हो गये कि जहाँ भी इनकी किताब मिलती उसे पढ़ने का हर संभव प्रयास करते थे। आपकी रुचि इस बात से साफ झलकती है कि एक किताब को पढ़ने के लिए आपने एक तम्बाकू वाले से दोस्ती करली और उसकी दुकान पर मौजूद "तिलस्मे - होशरुबा" पढ़ डाली।
अंग्रेजी के अपने जमाने के मशहूर उपन्यासकार रोनाल्ड की किताबों के उर्दू तरजुमो को आपने काफी कम उम्र में ही पढ़ लिया था। इतनी बड़ी - बड़ी किताबों और उपन्यासकारों को पढ़ने के बावजूद प्रेमचन्द ने अपने मार्ग को अपने व्यक्तिगत विषम जीवन अनुभव तक ही महदूद रखा।
तेरह वर्ष की उम्र में से ही प्रेमचन्द ने लिखना आरंभ कर दिया था। शुरु में आपने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह आपका साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो मरते दम तक साथ - साथ रहा।

प्रेमचन्द की दूसरी शादी
सन् १९०५ में आपकी पहली पत्नी पारिवारिक कटुताओं के कारण घर छोड़कर मायके चली गई फिर वह कभी नहीं आई। विच्छेद के बावजूद कुछ सालों तक वह अपनी पहली पत्नी को खर्चा भेजते रहे। सन् १९०५ के अन्तिम दिनों में आपने शीवरानी देवी से शादी कर ली। शीवरानी देवी एक विधवा थी और विधवा के प्रति आप सदा स्नेह के पात्र रहे थे।
यह कहा जा सकता है कि दूसरी शादी के पश्चात् आपके जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। आपके लेखन में अधिक सजगता आई। आपकी पदोन्नति हुई तथा आप स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिये गए। इसी खुशहाली के जमाने में आपकी पाँच कहानियों का संग्रह सोजे वतन प्रकाश में आया। यह संग्रह काफी मशहूर हुआ।
व्यक्तित्व
सादा एवं सरल जीवन के मालिक प्रेमचन्द सदा मस्त रहते थे। उनके जीवन में विषमताओं और कटुताओं से वह लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाजी मान लिया जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा "हमारा काम तो केवल खेलना है- खूब दिल लगाकर खेलना- खूब जी- तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे। किन्तु हारने के पश्चात् - पटखनी खाने के बाद, धूल झाड़ खड़े हो जाना चाहिए और फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर जैसा कि सूरदास कह गए हैं, "तुम जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।" कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्यता और उदारता के वह मूर्ति थे।
जहां उनके हृदय में मित्रों के लिए उदार भाव था वहीं उनके हृदय में गरीबों एवं पीड़ितों के लिए सहानुभूति का अथाह सागर था। जैसा कि उनकी पत्नी कहती हैं "कि जाड़े के दिनों में चालीस - चालीस रुपये दो बार दिए गए दोनों बार उन्होंने वह रुपये प्रेस के मजदूरों को दे दिये। मेरे नाराज होने पर उन्होंने कहा कि यह कहां का इंसाफ है कि हमारे प्रेस में काम करने वाले मजदूर भूखे हों और हम गरम सूट पहनें।"
प्रेमचन्द उच्चकोटि के मानव थे। आपको गाँव जीवन से अच्छा प्रेम था। वह सदा साधारण गंवई लिबास में रहते थे। जीवन का अधिकांश भाग उन्होंने गाँव में ही गुजारा। बाहर से बिल्कुल साधारण दिखने वाले प्रेमचन्द अन्दर से जीवनी-शक्ति के मालिक थे। अन्दर से जरा सा भी किसी ने देखा तो उसे प्रभावित होना ही था। वह आडम्बर एवं दिखावा से मीलों दूर रहते थे। जीवन में न तो उनको विलास मिला और न ही उनको इसकी तमन्ना थी। तमाम महापुरुषों की तरह अपना काम स्वयं करना पसंद करते थे।

ईश्वर के प्रति आस्था
जीवन के प्रति उनकी अगाढ़ आस्था थी लेकिन जीवन की विषमताओं के कारण वह कभी भी ईश्वर के बारे में आस्थावादी नहीं बन सके। धीरे - धीरे वे अनीश्वरवादी से बन गए थे। एक बार उन्होंने जैनेन्दजी को लिखा "तुम आस्तिकता की ओर बढ़े जा रहे हो - जा रहीं रहे पक्के भग्त बनते जा रहे हो। मैं संदेह से पक्का नास्तिक बनता जा रहा हूँ।"
मृत्यू के कुछ घंटे पहले भी उन्होंने जैनेन्द्रजी से कहा था - "जैनेन्द्र, लोग ऐसे समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।"
प्रेमचन्द की कृतियाँ
प्रेमचन्द ने अपने नाते के मामू के एक विशेष प्रसंग को लेकर अपनी सबसे पहली रचना लिखी। १३ साल की आयु में इस रचना के पूरा होते ही प्रेमचन्द साकहत्यकार की पंक्ति में खड़े हो गए। सन् १८९४ ई० में "होनहार बिरवार के चिकने-चिकने पात" नामक नाटक की रचना की। सन् १८९८ में एक उपन्यास लिखा। लगभग इसी समय "रुठी रानी" नामक दूसरा उपन्यास जिसका विषय इतिहास था की रचना की। सन १९०२ में प्रेमा और सन् १९०४-०५ में "हम खुर्मा व हम सवाब" नामक उपन्यास लिखे गए। इन उपन्यासों में विधवा-जीवन और विधवा-समस्या का चित्रण प्रेमचन्द ने काफी अच्छे ढंग से किया।
जब कुछ आर्थिक निर्जिंश्चतता आई तो १९०७ में पाँच कहानियों का संग्रह सोड़ो वतन (वतन का दुख दर्द) की रचना की। जैसा कि इसके नाम से ही मालूम होता है, इसमें देश प्रेम और देश को जनता के दर्द को रचनाकार ने प्रस्तुत किया। अंग्रेज शासकों को इस संग्रह से बगावत की झलक मालूम हुई। इस समय प्रेमचन्द नायाबराय के नाम से लिखा करते थे। लिहाजा नायाब राय की खोज शुरु हुई। नायाबराय पकड़ लिये गए और शासक के सामने बुलाया गया। उस दिन आपके सामने ही आपकी इस कृति को अंग्रेजी शासकों ने जला दिया और बिना आज्ञा न लिखने का बंधन लगा दिया गया।
इस बंधन से बचने के लिए प्रेमचन्द ने दयानारायण निगम को पत्र लिखा और उनको बताया कि वह अब कभी नयाबराय या धनपतराय के नाम से नहीं लिखेंगे तो मुंशी दयानारायण निगम ने पहली बार प्रेमचन्द नाम सुझाया। यहीं से धनपतराय हमेशा के लिए प्रेमचन्द हो गये।
"सेवा सदन", "मिल मजदूर" तथा १९३५ में गोदान की रचना की। गोदान आपकी समस्त रचनाओं में सबसे ज्यादा मशहूर हुई अपनी जिन्दगी के आखिरी सफर में मंगलसूत्र नामक अंतिम उपन्यास लिखना आरंभ किया। दुर्भाग्यवश मंगलसूत्र को अधूरा ही छोड़ गये। इससे पहले उन्होंने महाजनी और पूँजीवादी युग प्रवृत्ति की निन्दा करते हुए "महाजनी सभ्यता" नाम से एक लेख भी लिखा था।

मृत्यु
सन् १९३६ ई० में प्रेमचन्द बीमार रहने लगे। अपने इस बीमार काल में ही आपने "प्रगतिशील लेखक संघ" की स्थापना में सहयोग दिया। आर्थिक कष्टों तथा इलाज ठीक से न कराये जाने के कारण ८ अक्टूबर १९३६ में आपका देहान्त हो गया। और इस तरह वह दीप सदा के लिए बुझ गया जिसने अपनी जीवन की बत्ती को कण-कण जलाकर भारतीयों का पथ आलोकित किया।



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प्रेमचंद की सर्वोत्तम 15 कहानियां
मुंशी प्रेमचंद को उनके समकालीन पत्रकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने 1930 में उनकी प्रिय रचनाओं के बारे में प्रश्न किया, "आपकी सर्वोत्तम पन्द्रह गल्पें कौनसी हैं?"
प्रेमचंद ने उत्तर दिया, "इस प्रश्न का जवाब देना कठिन है। 200 से ऊपर गल्पों में कहाँ से चुनूँ, लेकिन स्मृति से काम लेकर लिखता हूँ -
  1. बड़े घर की बेटी
  2. रानी सारन्धा
  3. नमक का दरोगा
  4. सौत
  5. आभूषण
  6. प्रायश्चित
  7. कामना
  8. मन्दिर और मसजिद
  9. घासवाली
  10. महातीर्थ
  11. सत्याग्रह
  12. लांछन
  13. सती
  14. लैला
  15. मन्त्र"

पुत्र-प्रेम
बाबू चैतन्यदास ने अर्थशास्त्र खूब पढ़ा था, और केवल पढ़ा ही नहीं था, उसका यथायोग्य व्यवहार भी वे करते थे। वे वकील थे, दो-तीन गांवों में उनकी जमींदारी भी थी, बैंक में भी कुछ रुपये थे। यह सब उसी अर्थशास्त्र के ज्ञान का फल था। जब कोई खर्च सामने आता तब उनके मन में स्वभावतः: प्रश्न होता था - इससे स्वयं मेरा उपकार होगा या किसी अन्य पुरुष का? यदि दो में से किसी का कुछ भी उपकार न होता तो वे बड़ी निर्दयता से उस खर्च का गला दबा देते थे। ‘व्यर्थ' को वे विष के समाने समझते थे। अर्थशास्त्र के सिद्धांत उनके जीवन-स्तम्भ हो गये थे।

प्रेमचंद की लघु-कथाएं
प्रेमचंद के लघुकथा साहित्य की चर्चा करें तो प्रेमचंद ने लघु आकार की विभिन्न कथा-कहानियां रची हैं। इनमें से कुछ लघु-कथा के मानक पर खरी उतरती है व अन्य लघु-कहानियां कही जा सकती हैं। प्रेमचंद की लघु-कथाओं में - कश्मीरी सेब, राष्ट्र का सेवक, देवी, बंद दरवाज़ा, व बाबाजी का भोग प्रसिद्ध हैं। यह पृष्ठ प्रेमचंद की लघु-कथाओं को समर्पित है।

पूस की रात
हल्कू ने आकर स्त्री से कहा-सहना आया है, लाओ, जो रुपए रखे हैं, उसे दे दूँ। किसी तरह गला तो छूटे।
मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिर कर बोली-तीन ही तो रुपए हैं, दे दोगे तो कंबल कहाँ से आवेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उससे कह दो, फसल पर रुपए दे देंगे। अभी नहीं।

सद्गति | प्रेमचंद की कहानी
दुखी चमार द्वार पर झाडू लगा रहा था और उसकी पत्नी झुरिया, घर को गोबर से लीप रही थी। दोनों अपने-अपने काम से फुर्सत पा चुके थे, तो चमारिन ने कहा, 'तो जाके पंडित बाबा से कह आओ न। ऐसा न हो कहीं चले जाएं जाएं।'
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जीवन सार
मेरा जीवन सपाट, समतल मैदान है, जिसमें कहीं-कहीं गढ़े तो हैं, पर टीलों, पर्वतों, घने जंगलों, गहरी घाटियों और खण्डहरों का स्थान नहीं है। जो सज्जन पहाड़ों की सैर के शौकीन हैं, उन्हें तो यहाँ निराशा ही होगी। मेरा जन्म सम्वत् १९६७ में हुआ। पिता डाकखाने में क्लर्क थे, माता मरीज। एक बड़ी बहिन भी थी। उस समय पिताजी शायद २० रुपये पाते थे। ४० रुपये तक पहुँचते-पहुँचते उनकी मृत्यु हो गयी। यों वह बड़े ही विचारशील, जीवन-पथ पर आँखें खोलकर चलने वाले आदमी थे; लेकिन आखिरी दिनों में एक ठोकर खा ही गये और खुद तो गिरे ही थे, उसी धक्के में मुझे भी गिरा दिया। पन्द्रह साल की अवस्था में उन्होंने मेरा विवाह कर दिया और विवाह करने के साल ही भर बाद परलोक सिधारे। उस समय मैं नवें दरजे में पढ़ता था। घर में मेरी स्त्री थी, विमाता थी, उनके दो बालक थे, और आमदनी एक पैसे की नहीं। घर में जो कुछ लेई-पूँजी थी, वह पिताजी की छ: महीने की बीमारी और क्रिया-कर्म में खर्च हो चुकी थी। और मुझे अरमान था, वकील बनने का और एम०ए० पास करने का। नौकरी उस जमाने में भी इतनी ही दुष्प्राप्य थी, जितनी अब है। दौड़-धूप करके शायद दस-बारह की कोई जगह पा जाता; पर यहाँ तो आगे पढ़ने की धुन थी-पाँव में लोहे की नहीं अष्टधातु की बेडिय़ाँ थीं और मैं चढऩा चाहता था पहाड़ पर!

प्रेमचंद के आलेख व निबंध
प्रेमचंद के साहित्य व भाषा संबंधित निबंध व भाषण 'कुछ विचार' नामक संग्रह में संकलित हैं। इसके अतिरिक्त 'साहित्य' का उद्देश्य में प्रेमचंद की अधिकांश सम्पादकीय टिप्पणियां संकलित हैं।
यहाँ प्रेमचंद के भाषण, आलेख व निबंधों को संकलित किया जा रहा है। निसंदेह यह संकलन पाठकों को साहित्यकार प्रेमचंद को एक विचारक के रूप में भी समझने का अवसर प्रदान करेगा।

प्रेमचंद ने कहा था
  • बनी हुई बात को निभाना मुश्किल नहीं है, बिगड़ी हुई बात को बनाना मुश्किल है। [रंगभूमि]
  • क्रिया के पश्चात् प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है। [ मानसरोवर - सवासेर गेहूँ]
  • रूखी रोटियाँ चाँदी के थाल में भी परोसी जायें तो वे पूरियाँ न हो जायेंगी। [सेवासदन]
  • कड़वी दवा को ख़रीद कर लाने, उनका काढ़ा बनाने और उसे उठाकर पीने में बड़ा अन्तर है। [सेवासदन]
  • चोर को पकड़ने के लिए विरले ही निकलते हैं, पकड़े गए चोर पर पंचलत्तिया़ जमाने के लिए सभी पहुँच जाते हैं। [रंगभूमि]
  • जिनके लिए अपनी ज़िन्दगानी ख़राब कर दो, वे भी गाढ़े समय पर मुँह फेर लेते हैं। [रंगभूमि]
  • मुलम्मे की जरूरत सोने को नहीं होती। [कायाकल्प]
  • सूरज जलता भी है, रोशनी भी देता है। [कायाकल्प]
  • सीधे का मुँह कुत्ता चाठा है। [कायाकल्प]
  • उत्सव आपस में प्रीति बढ़ाने के लिए मनाए जाते है। जब प्रीति के बदले द्वेष बढ़े, तो उनका न मनाना ही अच्छा है। [कायाकल्प]
  • पारस को छूकर लोहा सोना होे जाता है, पारस लोहा नहीं हो सकता। [ मानसरोवर - मंदिर]
  • बिना तप के सिद्धि नहीं मिलती। [मानसरोवर - बहिष्कार]
  • अपने रोने से छुट्टी ही नहीं मिलती, दूसरों के लिए कोई क्योकर रोये? [मानसरोवर -जेल]
  • मर्द लज्जित करता है तो हमें क्रोध आता है। स्त्रियाँ लज्जित करती हैं तो ग्लानि उत्पन्न होती है। [मानसरोवर - जलूस]
  • अगर माँस खाना अच्छा समझते हो तो खुलकर खाओ। बुरा समझते हो तो मत खाओ; लेकिन अच्छा समझना और छिपकर खाना यह मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो इसे कायरता भी कहता हूँ और धूर्तता भी, जो वास्तव में एक है।

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प्रेमचंद कुछ संस्मरण
प्रेमचंद अपनी वाक्-पटुता के लिए भी प्रसिद्ध हैं। धीर-गंभीर दिखने वाले 'प्रेमचंद' कर्म और वाणी के धनी थे। प्रेमचंद के बहुत से किस्से कहे-सुने जाते हैं। यहाँ उन्हीं संस्मरणों को आपके लिए संकलित किया जा रहा है।

कहानी - आलेख
एक आलोचक ने लिखा है कि इतिहास में सब-कुछ यथार्थ होते हुए भी वह असत्य है, और कथा-साहित्य में सब-कुछ काल्पनिक होते हुए भी वह सत्य है ।
इस कथन का आशय इसके सिवा और क्या हो सकता है कि इतिहास आदि से अन्त तक हत्या, संग्राम और धोखे का ही प्रदर्शन है, जो सुंदर है इसलिए असत्य है । लोभ की क्रूर से क्रूर, अहंकार की नीच से नीच, ईर्षा की अधम से अधम घटनाएं आपको वहाँ मिलेगी, और आप सोचने लगेगे, 'मनुष इतना अमानुष है ! थोड़े से स्वार्थ के लिए भाई भाई की हत्या कर डालता है, बेटा बाप की हत्या कर डालता, है और राजा असंख्य प्रजाओं की हत्या कर डालता है!' उसे पढ़कर मन में ग्लानि होती है आनन्द नहीं, और जो वस्तु आनन्द नहीं प्रदान कर सकती वह सुंदर नहीं हौ सकती, और जो सुन्दर नहीं हो सकती वह सत्य भी नहीं हो सकती । जहाँ अानंद है वही सत्य है । साहित्य काल्पनिक वस्तु है पर उसका प्रधान गुण है आनंद प्रदान करना, और इसलिए वह सत्य है ।
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बिहारी के दोहे | Bihari's Couplets

महाकवि बिहारीलाल का जन्म 1603 के लगभग ग्वालियर में हुआ। उनके पिता का नाम केशवराय था व वे माथुर चौबे जाति से संबंध रखते थे।  

बिहारी का बचपन बुंदेल खंड में बीता और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत की। उनके एक दोहे से उनके बाल्यकाल व यौवनकाल का मान्य प्रमाण मिलता है:

जनम ग्वालियर जानिए खंड बुंदेले बाल।
तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल।।


कहा जाता है कि जयपुर-नरेश मिर्जा राजा जयसिंह अपनी नयी रानी के प्रेम में इतने डूबे रहते थे कि वे महल से बाहर भी नहीं निकलते थे और राज-काज की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। मंत्री आदि लोग इससे बड़े चिंतित थे, किंतु राजा से कुछ कहने को शक्ति किसी में न थी। बिहारी ने यह कार्य अपने ऊपर लिया। उन्होंने निम्नलिखित दोहा किसी प्रकार राजा के पास पहुंचाया:

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सा बिंध्यों, आगे कौन हवाल।।


इस दोहे ने राजा पर मंत्र जैसा कार्य किया। वे रानी के प्रेम-पाश से मुक्त होकर पुनः अपना राज-काज संभालने लगे। वे बिहारी की काव्य कुशलता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बिहारी से और भी दोहे रचने के लिए कहा और प्रति दोहे पर एक अशर्फ़ी देने का वचन दिया। बिहारी जयपुर नरेश के दरबार में रहकर काव्य-रचना करने लगे, वहां उन्हें पर्याप्त धन और यश मिला। 1664 में वहीं रहते उनकी मृत्यु हो गई।

बिहारी के दोहे | Bihari's Couplets
रीति काल के कवियों में बिहारी सर्वोपरि माने जाते हैं। सतसई बिहारी की प्रमुख रचना हैं। इसमें 713 दोहे हैं। बिहारी के दोहों के संबंध में किसी ने कहा हैः
रीति काल के कवियों में बिहारी सर्वोपरि माने जाते हैं। सतसई बिहारी की प्रमुख रचना हैं। इसमें 713 दोहे हैं। बिहारी के दोहों के संबंध में किसी ने कहा हैः
सतसइया के दोहरा ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगैं घाव करैं गम्भीर।।

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नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल।
अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल।।

कोटि जतन कोऊ करै, परै न प्रकृतिहिं बीच।
नल बल जल ऊँचो चढ़ै, तऊ नीच को नीच।।

कब को टेरत दीन ह्वै, होत न स्याम सहाय।
तुम हूँ लागी जगत गुरु, जगनायक जग बाय।।


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Shayari

जो कर दे इशारा तो रुक जाऊंगा,गर करे तू  इशारा तो चुप जाऊंगा l कभी एक इशारा तू कर तो सही, तेरे एक इशारे पे मिट जाऊंगा l